कमल मानव के प्रयास
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उदयपुर-)( भारत के मध्यकालीन इतिहास के महानायक महाराणा प्रताप का नाम आते ही हमारे रग-रग में शक्ति का संचार संपुटित होता है, महाराणा प्रताप की वीरता और अदम्य साहस की कहानियां हमारे जेहन में तैर उठती है।
सन 18 जून 1576 में लड़ा गया यह विश्व प्रसिद्ध युद्ध जिसमें राणा प्रताप की विजय हुई थी। इस युद्ध में आमजन ने हिस्सा लिया था । कई मायने में भारत के इतिहास का एक अभिन्न अंग है, हमारे देश में व्यक्ति की जयंती या अन्य अवसर मनाने का प्रचलन तो खुब रहा है, लेकिन मूल घटनाओं के नायकों के प्रति हमारी उदासीनता बनी रहती है कुछ ऐसा ही मेवाड़ की धरा पर 18 जून को शहीद हुए लोगों के प्रति भी होता आया है। रक्त तलाई में आज भी ग्वालियर नरेश व उनके पुत्रों, बड़ी सादड़ी के झाला मान सिंह, श्रीमाली समाज के सतीमाता का चबूतरा, हकीमखान की मजार आदि उन देशभक्तों की शहादत के प्रमाण मौजूद है।
सरकारी स्तर पर महाराणा प्रताप की जयंती बड़े स्तर पर मनाई जाती हैं लेकिन विश्व प्रसिद्ध युद्ध में शहीद होने वाले शहीदों को याद करने वाला कोई नहीं रहा है।
हल्दीघाटी युद्ध तिथि की इस उपेक्षा के चलते आज से तकरीबन 12 वर्ष पूर्व हल्दीघाटी खमनोर क्षेत्र में रहने वाले एक युवा के मन में एक गहरी टीस उठी और युद्ध तिथि के दिन अपने साथियों के साथ उस युद्ध मैदान पहुंचकर युद्ध में मारे गए जाने अनजाने तमाम शहीदों की याद में दीपांजलि के माध्यम से एक ऐसा कार्यक्रम शुरू किया जिसकी जरूरत वर्षों पहले थी।
महाराणा प्रताप के जीवन मुल्यो से प्रभावित व उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करने वाले कमल मानव पेशे से पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता है।
उनके द्वारा मुट्ठीभर लोगों के साथ दीपयज्ञ शुरू किया गया यह दीपोत्सव आज एक बड़े शौर्यदिवस का स्वरूप ले चुका है।
मानव द्वारा संस्थापित हल्दीघाटी पर्यटन समिति के तत्वाधान में आयोजित होने वाले दीपदान कार्यक्रम में युद्ध तिथि के दिन जिले भर से आज बड़ी संख्या में लोग हल्दीघाटी की रक्त तलाई में पहुंचते हैं और दीपांजलि स्वरुप श्रद्धांजलि अर्पित करते हैंl
यह विधि की विडंबना है कि एक व्यक्ति द्वारा किए जा रहे इस प्रयास में अभी तक सरकारी मुलाजिमों ने किसी भी प्रकार की मदद नहीं की हैं l
हद तो यह है कि प्रताप के नाम पर अपने आप को सबसे बड़ा भक्त बता कर आम जनता से वोट बटोरने वाले राजनेता भी यहां नहीं पहुंच पाए हैं l
महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े इस अभिन्न अंग को आमजन में जिंदा रखने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास करने वाले कमल मानव का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा है आइए जानते हैं कैसे इस कार्य की शुरुआत हुई l
होटल इंडस्ट्री से हल्दीघाटी तक…….
खमनोर गांव के शिक्षाविद परिवार से संबंध रखने वाले व सन इंदौर 29 सितम्बर 1975 को जन्मे मानव का प्रारंभिक जीवन इंदौर मे बीता। उसके बाद 1997 से उदयपुर की होटल इंडस्ट्रीज से जुड़कर उन्होंने पर्यटन से जुड़ी संभावनाओं को तलाशते हुए मातृभूमि हल्दीघाटी की ओर रुख किया।
लेकिन इसी दौरान सरकारी स्तर पर हल्दीघाटी की अपेक्षा व निजी स्तर पर किए जा रहे कथित दोहन से इनका जी उचट गया और महाराणा प्रताप के जीवन मूल्यों को आत्मसात कर कलम थाम कर सत्य के सेनानी बन गए।
एक पत्रकार के रूप मे आपने शुरुआती दौर मे क्षेत्र की समस्याओं सहित युद्ध स्थली की अपेक्षाओं को लेकर राज्य सरकार से लगातार केंद सरकार तक को खूब घेरा। इसी दौर मे आपने नाथद्वारा से राजसमंद टाइम्स हिंदी पाक्षिक अखबार का प्रकाशन शुरू किया। जिसका गोस्वामी तिलकायत विशाल बावा द्वारा विमोचन किया गया। आपके ज्वलंत मुद्दों पर तीखे सवालों और सार गर्भित लेखों के चलते सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर विकास विरोधी दुश्मनों की भी एक बडी फौज तैयार हो गयी,लेकिन आप निरंतर लिखते रहे।
बहुआयामी प्रतिभा के धनी कमल मानव होटल मैनेजमेंट डिप्लोमा धारक कला स्नातक है।
देश भक्ति के लिए समर्पित मानव छात्र जीवन से ही सेना में जाना चाहते थे जिसके चलते इनका झुकाव एनसीसी की और हुआ जिसमें आपने इंदौर में सीनियर अंडर ऑफिसर के रैंक प्राप्त की व ए,बी व सी प्रमाण पत्र के साथ बेसिक लीडरशीप केम्प में प्रमाणपत्र हासिल किया है।
नेहरू युवा केंद्र संगठन द्वारा टीचर ऑफ़ ट्रेनर (टीओटी) के रूप में प्रमाणित होकर युवा प्रशिक्षण जारी रख रखा है। दो बार राजस्थान सांस्कृतिक दल प्रभारी के रूप में सांस्कृतिक महोत्सव व युवामहोत्सव में भाग लिया। राष्ट्रीय युवा संगठन जिला राजसमन्द प्रभारी रहते युवाओं को जागरूक करने के प्रयास किये गए जो आज भी जारी है।
वर्तमान में आप राजसमन्द आई एफ डब्ल्यू जे राजस्थान के जिलाध्यक्ष के रूप में पत्रकार संगठन को मजबूत करते हुए पत्रकार सुरक्षा कानून की लड़ाई लड रहे हैं ।
अतीत को बचाना है….
इतिहासकार बी एस भाटी का मानना है कि समय की परतों में अतीत दबता चला जाता है और हम अपना गौरव,अपना पराक्रम भूलते जाते हैं। ऐसे में 18 जुन जैसे विशेष दिवस अवसर होने चाहिए कि हम आपस में बैठे,अतीत के उस पराक्रम की चर्चा करें उसके विषय में स्वयं तो जाने ही ,अपनी आने वाली पीढ़ी को भी पुरखों के बलिदान के प्रति जागरूक करें। यह तमाम चीजें बिना सरकारी सहायता से लंबे समय तक नहीं चल सकती l
भाटी बताते हैं कि कमल मानव ने बारह साल पहले मात्र 251 दीपक से जो कार्य शुरू किया था उसको वह सभी प्रताप भक्तों के साथ आज 5100 दीपक तक लेकर आये है। धीमी पड़ती युवा क्रांति के मध्य यह कोई मामूली बात नही है।
भाटी का मानना है कि सितारा होटलों के वातानुकूलित पर्यावरण में रहने वाले कमल को हल्दीघाटी का संघर्ष पर्यटन विकास की सोच के साथ गाँव लेकर आई । स्मारक के कार्य आरम्भ करने हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री से मुलाकात कर इस ओर सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए 2007 में कार्य आरम्भ हुए।
सतर्कता समिति में हल्दीघाटी स्मारक के नजदीक हो रहे अतिक्रमण के खिलाफ 8 माह तक संघर्ष कर गलत का विरोध किया गया।
सन 2016 में जब राज्यपाल महामहिम कल्याण सिंह हल्दीघाटी के दौर पर आए तब मानव ने बेबाकी से हल्दीघाटी की हालत व लीपापोती की समस्या को राज्यपाल के समक्ष रखा।
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इंटरनेट की दुनिया से आम आदमी तक……..
वेब डिजाइनर के रूप में आजीविका के साथ दिसंबर 2005 से कमल पालीवाल ने स्वयं को अपने गांव के प्रति समर्पित कर हल्दीघाटी डॉट कॉम वेबसाइट का निर्माण किया। वेबसाइट के जरिए मूल स्थल रक्त तलाई का प्रचार-प्रसार करते हुए आम पर्यटकों को शहीदों की शहादत स्थली की ओर आकर्षित कर रहे हैं।
हल्दीघाटी पर्यटन समिति की स्थापना करते हुए स्थानीय युवाओं को पर्यटन से ग्रामीण रोजगार के विषय में जागरूक करना आरंभ किया परिणाम स्वरूप हल्दीघाटी में बादशाही बाग से लेकर खमनोर तक कई छोटे-छोटे कामगारों को रोजगार का सहारा मिला ।
वर्तमान में होटल रिसोर्ट आदि बन चुके हैं यदि पारदर्शिता से हल्दीघाटी पर्यटन को बढ़ावा मिलता है तो निसंदेह हल्दीघाटी मॉलेला नाथद्वारा कुंभलगढ़ आदि को जोड़कर पर्यटकों के लिए एक अच्छा सर्किट निर्माण किया जा सकता है
महाराणा प्रताप जयंती 2019 पर विधायक, सांसद सहित जिला प्रशासन द्वारा हल्दीघाटी के समग्र विकास की घोषणा की गई जो संतोषप्रद है। आगामी 18 जून को 433वीं हल्दीघाटी युद्धतिथि पर एक बार पुनः शहीदों को दीपांजलि अर्पित की जायेगी। आप सभी का इस पुनीत यज्ञ में शहीदों को दीपांजलि अर्पित करने हेतु हार्दिक स्वागत है।